10/3/10

प्रेम में डूबी औरत

ये जैसी है वैसी दिखती नही है

ये जैसी दिखती है वैसी है नही

ये औरत

जो कभी थकी थकी सी

कभी कभी ऊर्जा के अतिरेक से भरी हुई दिखती है

अपने घर में घूमती हुई

पडोसियों से बतकहियाँ करती हुई

इसे शहर की आग ने बहुत तपाया है

तपा तपा कर पिघलाया है

और सोना बनाया है

इस पूरी प्रक्रिया में

बिल्कुल तरल हो गई है औरत

चक्करघिन्नी सी घूमती रहती है जो

घर से स्कूल

स्कूल से दफ्तर

दफ्तर से बाजार

और बाजार से घर तक

कभी अचानक हंस पडती है

कभी अचानक रोने लगती है

पता नहीं चलता

यह दमित हंसी है

या दमित रूदन

जो मौका पाकर निकलने की कोशिश में है

चाँदनी से बात करती है

और सूरज से दो दो हाथ भी

प्रेम में डूबी इस औरत का रहस्य

समझने की नहीं

सिर्फ महसूस करने की एक आदिम चाह है

नन्हे बच्चो में खोई है यह

बगैर पति को भुलाये हुए

बूढे होते माँ बाप की चिंता में भी मग्न है

कितना विशाल है आँचल इस औरत का

पर दुःखी है औरत इस विशाल आँचल से भी

जिसमे दुःख के पत्थर भारी

सुख के फूल कम है.

औरत की आँखे हँसते हँसते भी बहुत नम है.